सोनिया गांधी की बीमारी से जुड़ी जानकारी जितनी छिपाई गई उसका रहस्य उतना ही गहराता गया.
गांधी ‘राज’ परिवार में ऐसे कई रहस्य ताला-जड़े संदूकों में बंद हैं जिनपर कभी-भी, कहीं-भी अंतहीन बहस शुरू की जा सकती है. लेकिन संसद से लेकर सड़क तक फैली इन बहसों से उन तालों की चाबियां कभी नहीं खोजी जा सकीं जो रहस्य वाले इन संदूकों के ताले खोल सकें. कई पीढ़ियों में फैले इन रहस्यों में से कुछ हास्य की परिधि में हैं, कुछ व्योमकेश बख्शी जैसे जासूसों की जरूरत याद दिलाते हैं और कुछ राहुल गांधी की शादी और उनके प्यार-व्यापार के आस-पास अपनी बाहें ऊपर चढ़ाए सालों से चक्कर काटे जा रहे हैं.
इन्हीं रहस्यों में से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें खुद कांग्रेस ने तिलिस्मी बना दिया. कभी अपनी तथाकथित जरूरतों के चलते और कभी परिवार के प्रति अपनी वफादारी की अति दिखाने के फेर में. इन्हीं में शामिल है वह रहस्य, जो इस वाक्य के खत्म होने के बाद लिखा है और जो राहुल गांधी के छुटि्टयों पर जाने से पहले तक शायद गांधी-नेहरू परिवार का सबसे हालिया इतना बड़ा रहस्य था. सोनिया गांधी की वह क्या बीमारी थी जिसे पिछले पांच सालों तक पूरे देश से छिपाया गया? और ऐसी क्या मजबूरी थी कि उस बीमारी को इस एहतियात से छिपाया गया?
इन्हीं रहस्यों में से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें खुद कांग्रेस ने तिलिस्मी बना दिया. कभी अपनी तथाकथित जरूरतों के चलते और कभी परिवार के प्रति अपनी वफादारी की अति दिखाने के फेर में
बात सन् 2011 की सर्दियां के आने से पहले के महीनों की है. ये इस रहस्य की कहानी के शुरूआती दिन थे और सबकुछ अस्पष्ट था. काफ्का की किसी कहानी-सा. एक रोज चार अगस्त को बाहर देश के मीडिया – बीबीसी और फ्रेंच न्यूज एजेंसी एएफपी – ने एक खबर ब्रेक की. इसके बाद कांग्रेस पार्टी की तरफ से जनता के नाम एक छोटा-सा पैगाम आया – सोनिया गांधी एक मेडिकल इमरजेंसी की वजह से सर्जरी के लिए विदेश गई हैं. बस इतना. कुछ दिनों बाद आठ अगस्त को एक और पैगाम आया. सर्जरी सफल रही है और सोनिया जी कुछ हफ्तों में भारत लौट आएंगीं. इसके अलावा न परिवार कुछ बोला, न पार्टी और न मीडिया ही आत्मविश्वास के साथ ज्यादा कुछ बोल पाया.
इसके बाद कयास लगने शुरू हो गए. वे न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में हैं.
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