आज से 43 साल पहले लाल किला परिसर में एक टाइम कैप्सूल जमीन के नीचे दबाया गया और चार साल बाद बाहर भी निकलवा लिया गया, लेकिन उसके भीतर क्या था और आज वह कहां है, यह किसी को नहीं पता.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के काम करने के तौरतरीकों में लोग कई समानताएं खोज सकते हैं. लेकिन इनके राजनैतिक जीवन की एक घटना इन तीनों के साथ विचित्र तरह का संयोग है. यह घटना ‘टाइम कैप्सूल’ से जुड़ा विवाद है.
इसमें सबसे हालिया विवाद मई, 2010 का है. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनकी सरकार ने गांधीनगर में बनने वाले महात्मा मंदिर की नींव में एक टाइम कैप्सूल दफन करवाया था. तीन फुट लंबे और ढाई फुट चौड़े इस स्टील सिलेंडर में कुछ लिखित सामग्री और डिजिटल कंटेट रखा गया था. सरकार के मुताबिक कैप्सूल में गुजरात के पचास साल का इतिहास संजोया गया था. कांग्रेस ने उस समय इसका काफी विरोध किया. पार्टी ने आरोप लगाया कि टाइम कैप्सूल के माध्यम से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास में अपना महिमामंडन करना चाहते हैं. कांग्रेस ने धमकी भी दी कि वह सत्ता में आई तो कैप्सूल निकलवा देगी.
इंदिरा गांधी सरकार स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ को यादगार तरीके से मनाना चाहती थी. इसके लिए योजना बनाई गई कि 15 अगस्त, 1973 को लाल किला परिसर में एक टाइम कैप्सूल जमीन में दबाया जाएगा
गुजरात कांग्रेस ने कैप्सूल में रखे दस्तावेजों में दर्ज जानकारी जानने के लिए राज्य सूचना आयोग में एक अर्जी भी लगाई थी. पार्टी ने बाद में दावा किया कि उसे जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक टाइम कैप्सूल में गुजरात के इतिहास के बजाय नरेंद्र मोदी के कामों को तवज्जो दी गई है और इसमें 90 फीसदी से ज्यादा सूचनाएं नरेंद्र मोदी के बारे में हैं.
बसपा की सुप्रीमो मायावती के बारे में 2009 में यह चर्चा चली थी कि उन्होंने अपनी पार्टी और खुद की उपलब्धियों से जुड़ी हुई जानकारी के दस्तावेज एक टाइम कैप्सूल में रखवाकर कहीं दफन करवाए हैं. हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई लेकिन उस समय मीडिया में यह खबर सुर्खियों में थी.
टाइम कैप्सूल से जुड़ा तीसरा और भारतीय राजनैतिक इतिहास का सबसे विवादास्पद मामला पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से संबंधित है. वैसे समयानुक्रम के हिसाब से इसे देश में इस तरह का पहला मामला कहा जाना चाहिए.
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